तुम्हें देख लेने के बाद जो होंठो पर मुस्कुराहट होती थी,
तुम्हें एकटक देखने पर दिल में जो घबराहट होती थी,
जहां से तुम चले जाते थे, वहीं पर तुम्हें देर तक निहारना,
इसे नादानी मत कह देना, भले ही वो मेरा पागलपना था,
तुम बताओ तुम्हारे लिए, वो इश्क़ नहीं था तो क्या था,
याद तो तुम्हें भी हो गया था, मेरी खिड़की की बनावट,
हाँ भले ही तुम भूल गए होगे, मेरी दिवाली की सजावट,
मैंने देखा था तुम्हारे Desperation को, मुझे देखते वक़्त,
अपने खुदा से मैंने तुम्हारे लिए भी, कुछ तो ज़रूर कहा था,
तुम बताओ तुम्हारे लिए, वो इश्क़ नहीं था तो क्या था,
तुम दिल के इतने करीब थे कि जैसे मानो मेरे पड़ोसी थे,
मेरे पहले-पहले पागलपन के लिए, सिर्फ तुम ही दोषी थे,
तुम्हें तो पता है न लड़कियों के Nature और Attitude का,
फिर भी मैंने तुम्हें अपना प्यार, जताने का प्रयास किया था,
तुम बताओ तुम्हारे लिए, वो इश्क़ नहीं था तो क्या था,
Balcony कभी छत और कभी दरवाजे से दिख जाते थे,
हल्की बेचैनी सी होती थी जब, तुम नज़र नहीं आते थे,
तुम भी तो देखा करते थे मुझे, मोहब्बत की ही नज़रों से,
तो फिर तुमसे मोहब्बत करना, क्या मेरे लिए गुनाह था,
तुम बताओ तुम्हारे लिए, वो इश्क़ नहीं था तो क्या था,
औरों से अलग लगता था, तुम्हारा मुझे देखने का तरीका,
लड़कों में मैंने नहीं देखा, लड़की के लिए इतना सलीका,
तुम्हारे इन्हीं सब बातों की मुझे आदत सी हो गयी थी,
तुम से मिलने के बाद मेरे लिए, सबकुछ नया-नया था,
तुम बताओ तुम्हारे लिए, वो इश्क़ नहीं था तो क्या था,
मेरे लिए वो सबकुछ इश्क़ था, और मैंने तुम्हें ये जताया भी,
तुम भी मुझे उतना ही चाहते थे, ये आँखों से तुमने बताया भी,
अब ये मेरा डर कह लो, या मेरी Attitude जो मैंने बोला नहीं,
लेकिन जाते-जाते तुमने भी अपनी Feelings नहीं कहा था,
तुम बताओ तुम्हारे लिए, वो इश्क़ नहीं था तो क्या था,