Tuesday, 6 November 2018

मैं नही, मेरा मन उदास है......

Just a drawing by me. I think you should check it out. Composing this poem was really a big challenge, and also getting a nice cover.
ये जो मुस्कुराता हुआ दिख रहा है ये मैं हूँ, भीतर मन की उदासी है,
वो चोट मेरे मन को बहुत दे चुकी है, लेकिन मेरे लिए ख़ुदा सी है,
ये emotions, ये feelings बस मेरे मन को आती है, मुझे नही,
शायद इसीलिए मन को आज भी किसी सच्चे मन की तलाश है,
मैं तो कब से बस यही कह रहा हूँ कि मैं नही हूँ, मेरा मन उदास है.
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जिसे सुनने की आदत हो गयी है, आज भी उससे बात करना चाहता है,
कुछ खुशियां, कुछ गम, कुछ पल share उसके साथ करना चाहता है,
न जाने क्या जिद है मेरे मन की मुझे भी समझ में नही आता कभी कभी,
वो जिसने block कर दिया है उससे message की आज भी आस है,
मैं तो कब से बस यही कह रहा हूँ कि मैं नही हूँ, मेरा मन उदास है.
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अक्सर मुझे जो अच्छा लगता है, मेरा मन उसे नकार देता है,
नकारने के पीछे अपने तुजुर्वे का हवाला वो हर बार देता है,
हमेशा अपने मन को ignore करके अपने दिल की सुनी मैंने,
पता नही क्यो मेरा दिल मेरे लिए मेरे मन से ज़्यादा खास है,
मैं तो कब से बस यही कह रहा हूँ कि मैं नही हूँ, मेरा मन उदास है.
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मेरे साथ वो दिखावे में हंसता नही है, मैं उसके साथ मुस्कुरा लेता हूँ,
मन रोने का नाटक नही करता, मैं उसके साथ भले गुनगुना लेता हूँ,
इसे नही पता कि लोग किसी को दुखी देखकर खुश होते है बहुत,
मेरी खुशी से जलने वाले लोगों की बातों में बहुत मिठास है,
मैं तो कब से बस यही कह रहा हूँ कि मैं नही हूँ, मेरा मन उदास है.
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जाना चाहता है ये सबसे दूर, वही जहाँ मेरे मन का मन लग सके,
जहाँ अपना तो कोई नही हो वैसे, फिर भी अपनापन लग सके,
यहाँ पर कोई अपना नही मानता, अपना कह सब लेते है भले ही,
कोई हो जो मन से मेरे मन को अपना ले बस इतनी सी प्यास है,
मैं तो कब से बस यही कह रहा हूँ कि मैं नही हूँ, मेरा मन उदास है
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