Monday, 13 January 2020

इश्क़ और ठंढ.....

Fog and Smog
ये कोई कविता नहीं है, बस मन में आने वाला एक खयाल है, जिसे ज्यों का त्यों लिख दिया है।

मैं चलता जा रहा हूँ। सोचता हूँ कभी कभी, किसी किसी बात को। मुझे नहीं पता ये सबकुछ क्या चल रहा है। कभी कभी खुद में ही सरकार की नीतियों और विपक्ष के मुद्दों को समझने की कोशिश कर रहा हूँ। लेकिन ये सब कुछ सिर्फ एक कोशिश मात्र है। मुझे पता है कि इसका कुछ होने वाला नहीं है। और मुझे ये भी पता है कि अगर कोई राजनीतिक दल अच्छा नहीं भी है तब भी हमारे पास कोई विकल्प नहीं है, उसे बदलने का, या फिर उसे सुधारने का।

गाड़ी से चलने पर सड़कों की खराबी समझ में आती है। लेकिन पैदल चलने का एक अपना ही अंदाज़ है। सड़क पर बने हुए गड्ढे, और उन गड्ढों से निकली हुई एक छोटी सी पत्थर, जिसे पैरों से ठोकर मारते मारते कब आप सामने से आने वाले गाड़ी के करीब पहुँच जाते है पता नहीं चलता है। मौसम अगर ठंढ का हो तो मज़ा कुछ ज़्यादा ही हो जाता है। क्योंकि तब आपके पैरों में जुतें होते है, जो पत्थर को ठोकर मारना और आसान बना देती है।

ऐसे ही मैं भी आज जा रहा था। पैदल चल रहा था, कुछ सोचते हुए। फिर मेरे मन में चल रहा कोई सामाजिक मुद्दा जाने कब गीत में बदल गया पता ही नहीं चला। हैरान तो मैं तब हुआ जब मुझे ये एहसास हुआ कि मैं एक अंग्रेजी गाना गुनगुना रहा था।

मुझे नहीं पता था कि मैं कहाँ जा रहा हूँ। मुझे ये भी नहीं पता था कि मैं पहुंचा कहाँ तक हूँ। मोबाइल निकाल कर अपना location देखने का भी मन नहीं कर रहा था। हाथ को जैकेट के जेब में छिपा कर रखा था। कोई अंग्रेजी, या शायद कोई राहत फतेह आली ख़ान का कोई गीत गुनगुना रहा था। वजह ये थी कि शायद गीत गुनगुनाने से ठंढ का एहसास कम होता है। पर अगर ठंढ से इतना ही दिक्कत है तो घर से निकलने की ही क्या ज़रूरत थी, ये मैं समझ रहा था।

वो कहते हैं न, कि जो होनी होती है, वो होकर ही रहती है। कुछ ऐसा ही था मेरे साथ भी। उस दिन चलते-चलते मेरे सामने अचानक से वो प्रकट हो गयी। मैंने ज़रा गौर से उसके चेहरे को देखा। अरे, ये तो वही चेहरा था, जिसे मैं हमेशा देखना चाहता हूँ। कई बार मैंने कोशिश की कि उस चेहरे को अपनी आँखों में बसा लूँ, ताकि उसे देखने की बेचैनी ख़तम हो जाए। लेकिन इन आँखों में तो आँसू भी नहीं आते, फिर उसके चेहरे की तस्वीर तो बहुत बड़ी बात हो जाती है।

कई बार मैं सोचता हूँ, ये इश्क़ होता ही क्यों है। लेकिन फिर मैं सोचता हूँ, मुझे क्या है, मुझे तो इश्क़ हुआ ही नहीं है। लेकिन इसका ये मतलब नहीं है कि कभी होगा भी नहीं। हो भी सकता है कि चलते- चलते किसी मोड पर कभी इश्क़ हो जाए। वो जैसे फिल्मों में होता है न- LOVE AT FIRST SIGHT, वैसा वाला। और ऐसा इसलिए भी हो सकता है क्योंकि मेरी तो एक Crush भी है। Crush तो समझते हो न?

आओ, पहले Crush ही समझा दूँ। Crush वो होता है जिसे आप प्यार नहीं करते, और न ही वो आपको प्यार करता है। मतलब हो भी सकता है कि वो आपको प्यार करता हो, लेकिन आपको ये बात पता नहीं है। यहाँ तक कि आप ये पता भी नहीं करना चाहते कि वो आपसे प्यार करता है कि नहीं, और आप अपने प्यार का इजहार भी नहीं कर पा रहे हैं। ये वो है, जिसके पास आने पर आपकी धड़कने तेज़ हो जाती हैं, घबराहट, शर्माहट, हिचकिचाहट, और सारे आहट महसूस होने लगते हैं। आप उससे बात करना चाहते हैं, लेकिन उसके पास भी नहीं जा पाते। आप उसको खुश रखना भी नहीं चाहते और परेशान भी नहीं देख सकते। Crush मतलब वो, जिसके लिए आप पढ़ने जाते हो, लेकिन पढ़ नहीं पाते। जिसे सामने बैठा कर सिर्फ देखते रहना चाहते हो, लेकिन उससे नज़र भी नहीं मिला पाते। ऐसी बहुत सी चीजे हैं, जिससे आपको लगता है कि आपका किसी पर Crush है।

Crush तो मेरी भी है। ये Crush ही तो है, जो अभी अभी दिखी है। हर बार सोचता हूँ, जी भर कर देख लूँ। देख लूँ ताकि इस चेहरे को अपनी आँखों मे बसा सकूँ। आँखों में बसा सकूँ ताकि अगली बार उसे देखने की बेचैनी न रहे। लेकिन इन आँखों में तो इतनी भी जगह नहीं है कि इनमें आँसू आ सके। मैंने अपना फोन निकाला। अभी कुछ देर पहले मैंने अपना लोकेशन देखने के लिए अपना फोन नहीं निकाला था। मुझे ठंढ लग रहा था। लेकिन अभी Crush की तस्वीर लेने के लिए मैंने फोन निकाला। सोचा, चलो आँखों में न सही, फोन में ही उसकी तस्वीर कैद कर लेता हूँ।

जैसे ही मैंने camera को on किया, उधर से Pop-Up आया, No enough space in memory. हाँ, याद आया। कुछ दोस्तों की यादें हैं, memory में। मैंने फोन का storage देखा। मेरे फोन में तो 0 KB जगह बची थी। और crush की तस्वीर कम से कम 1.5 MB का होगा। मैंने सोचा दोस्तों की यादों को memory से बाहर कर देता हूँ। लेकिन फिर सोचा- एक लड़की के लिए? और वो भी ऐसी लड़की, जिसका नाम भी नहीं पता मुझे, जबकि लगातार 6 साल से उस एक चेहरे की जगह कोई दूसरा चेहरा नहीं ले पाया है। इतने में तो लोगों के बीच S** और Break-Up भी हो जाता है।

मैं सोचता हूँ अगर कभी वो मेरे बारे में सोचती होगी तो क्या? यही न कि मैं फटटू, डरपोक, बुजदिल हूँ। क्योंकि उसे थोड़े पता है कि मुझे कभी बोलना ही नहीं है। लेकिन फिर सोचता हूँ, क्या वो मेरे बारे में सोचती भी होगी?
थोड़ा अजीब है, लेकिन सच है।

दोस्त तो ज़िंदगी की एक अटूट कड़ी होते हैं। उनकी ही यादें मिटा दूँ मैं? लेकिन यादें तो मैं फिर से भी बना सकता हूँ। लेकिन फिर से यादें बनाने के लिए इसका चेहरा memory से हटाना पड़ेगा। अजीब असमंजस है। एक तरफ दोस्त हैं, दूसरी तरफ Crush है। लेकिन किसी ने कहा है- जो मिलता है उसे रख लेना चाहिए। चलो, दोस्तों के साथ जो भी यादें है, या तो उन्हे मिटा दो या फिर छोटा कर दो। लेकिन Crush की तस्वीर तो चाहिए। क्योंकि बार बार उसे कहाँ-कहाँ ढूँढता रहूँगा मैं। फोन में अगर उसकी तस्वीर आ जाए तो क्या बात है। दोस्तों से कह भी तो पाऊँगा- ये तुमलोगों की भाभी है।

क्या ये बदनाम करना नहीं होगा? अच्छा दोस्तों से नहीं कहूँगा। मेरे इश्क़ को गुमनाम ही रहने दूंगा मैं। Feeling क्या होता है? तुम उसका पता बता दो तो मैं उसकी शादी के दिन उसकी बारात में जाकर खाना भी खा सकता हूँ। ये कोई बड़ी बात नहीं है। यहाँ तक कि बिना कुछ महसूस किए उसका जयमाला का स्टेज भी सजा सकता हूँ।

लेकिन मुझे तब भी उसकी एक तस्वीर लेनी है। चलो, उसकी तस्वीर लेने के लिए दोस्तों की यादों को नहीं मिटाऊंगा, भले खुद को ही खोना पड़े। लेकिन वो गयी कहाँ !!!!!!!!!!!!!!!?????

इतनी देर से जो मैं सोच रहा था, क्या वो सब एक ख़याल था? क्या वो एक सपना था? नहीं, चल तो रहा था मैं। सड़क पर पड़े एक पत्थर को ठोकर भी मार रहा था। क्या ये सब झूठ है? क्या वो मुझे दिखी भी थी?
मैंने खुद को एक झापड़ लगाया। चोट लगता है, इसका मतलब ये सब हक़ीक़त है, कोई सपना, कोई ख़याल नहीं है। मैं रुक कर सोच रहा था, उस चेहरे को फिर से देखना पड़ेगा। इस बार भी मैंने उसे बढ़िया से नहीं देखा।

मैं एक तरफ थोड़ा तेज़ी से भागा। इस उम्मीद में कि शायद वो फिर से दिख जाए। कुछ कहना नहीं है, बस एक आखिरी बार देखना है। या फिर उसकी तस्वीर लेनी है, ताकि दुबारा जब भी उसे देखने का मन करे तो देख सकूँ। माँ जब पूछे कि कैसी लड़की चाहिए तो दिखा सकूँ। जब कभी कोई Drawing बनाने का मन करे, तो उसकी तस्वीर बना सकूँ। लेकीन वो नहीं दिखी। अबकी बार मैं दूसरी तरफ भागा, फिर से उसी उम्मीद में। लेकिन वो फिर भी नहीं दिखी। मैं खड़ा हो गया, अब मुझे ये नहीं पता चल रहा था कि मुझे किधर जाना है और मैं आया किधर से था। मुझे उस दिन अपना location देख लेना चाहिए था !!!!!!!!!!

"सिर्फ बनारस की गलियों में ही नहीं जनाब, इश्क़ अक्सर कुहासा में भी खो जाता है।"