Thursday, 1 March 2018

दीवाली से मेरी बातचीत.



दिवाली से मेरी बातचीत:-
पूरा पढियेगा please, अगर अच्छा न लगे तो ख़राब भी नही लगेगा
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Words And Writing Credit:-
Shashikant Sharma
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कल दिवाली दिख गयी मुझे. अपने आरा station पर. मैं गया था पटाखे लेने तो. मैंने उसे हाथ हिलाकर उसका ध्यान खिंचा.
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मैं- अरे दिवाली तुम? तुम आ भी गयी.
दिवाली- नहीं, मैं जा रही हूँ.
मैं- कहाँ?
दिवाली- जहाँ मेरी कदर हो.
मैं- मतलब? क्या हम तुम्हारी कदर नहीं करते?
दिवाली- नहीं करते. देखो न, तुम्हारे हाथ में पटाखा है.
मैं- पर ये सब तो तुम्हारे लिए है. तुम्हारे आने की ख़ुशी जाहिर करने के लिए.
दिवाली- या फिर सबको बताने के लिए की दिवाली आ गयी. सही है?
मैं- एक ही बात है न दिवाली?
दिवाली- एक ही बात कैसे है. क्या तुम सबको बताओगे तभी पता चलेगा कि मैं आयी हूँ?
मैं- ऐसा नहीं है दिवाली. कभी कभी हमारी तीव्र भावनाएं हमसे ये करवाने लगती है.
दिवाली- और मेरी कुछ भावनाएं नहीं होती?
मैं- क्या? तुमने कभी कहाँ ही नहीं.
दिवाली- तुमलोगो ने कहने लायक छोड़ा ही क्या है?
मैं- मुझे बताओ मैं कोशिश करूँगा.
दिवाली- सबसे ज्यादा पटाखे तुम्हारे हाथ में ही दिख रहे है. तुम क्या ख़ाक कोशिश करोगे?
मैं- इन पटाखों को मैं वापस कर सकता हूँ तुम्हारे खातिर.
एक तुम्हारे वापस करने से क्या होता है?
मैं- शायद लोग मेरी बराबरी करें.
दिवाली- कुछ लोग तो ये भी सोचते है कि जिन्होंने इतना मेहनत करके पटाखे बनाये है उन्हें दो रुपये दे देने से कुछ ख़ाक नहीं बदलेगा.
मैं- यार तुम point पर आओ न कि तुम चाहती क्या हो?
दिवाली- क्या तुमने कभी ये सोचा है कि मैं हर साल एक दिन के लिए ही क्यों आती हूँ?
मैं- देखा है, पर सोचा नहीं है कभी कि क्यों?
दिवाली- मुझे सफाई और शांति पसंद है. मुझे बच्चों की ख़ुशी अच्छी लगती है.
मैं- क्या मतलब है? करते तो है सफाई हम.
दिवाली- और फिर गन्दा भी करते हो. कह दो कि नहीं करते. पटाखों की बारूद और उनके covers कहाँ जाते है. धरती की gravity इतनी ज्यादा है कि उड़ते तो नहीं है. धरती पर ही वापस आ जाते है. और ये धूम-धड़ाक, और बम गोले की आवाज़, ये मुझे काटने दौड़ती है.
मैं- तो, फिर अगले दिन सबकुछ ठीक हो जाता है.
दिवाली- लेकिन मुझे ये कौन भरोसा दिलाये कि अगले दिन सब कुछ ठीक हो ही जायेगा? जब मैं आती हूँ तो तुमलोग पटाखे छोड़ने लगते हो. मुझे डराने की कोशिश करते हो.
मैं- नहीं, ये गलत है. हम डराते नहीं है.
दिवाली- सब कहते है. लेकिन सच्चाई यही है. जैसे ब्याही बेटी मायके पर बोझ होती है वैसे ही मैं भी तुम लोगो पर बोझ लगती हूँ. और इसलिए तुमलोग मुझे डराने की कोशिश करते हो ताकि मैं जल्दी से वापस चली जाऊं.
मैं- लेकिन तुमने कहा कि तुम्हे बच्चों की ख़ुशी अच्छी लगती है. और पटाखे छोड़कर बच्चे खुश होते है.
दिवाली- क्योंकि शुरू से उन्होंने यही देखा है. अगर दिवाली का मतलब सिर्फ दिए जला कर संसार को रौशन करना है तो ये हर रोज हो सकता है. और मैं भी हर रोज तुम्हारे साथ रह सकती हूँ. है कि नहीं?
मैं- तुम्हारी बातें मेरी समझ से बाहर की चीज़े है. हमने जो शुरू से देखा है हम तो वही करेंगे.
दिवाली- वही तो मैं कह रही हूँ. जाकर अपने गाँव में सबको बता देना कि दिवाली आयी थी पर हमारे गाँव नहीं आयी. वो शांति ढूंढने चली गयी दूसरे गाँव.
मैं- अच्छा इस बात का क्या भरोसा कि अगर हम पटाखे न छोड़े तो तुम यहां पर रहोगी? हमारे साथ, हमेशा हमेशा के लिए?
तुम हर रोज सिर्फ दिए जलाकर देखो, तुम्हे लगेगा की मैं तुम्हारे साथ हूँ. तुम सिर्फ अपने नहीं, दूसरे के घरों में भी रौशनी करके देखो, लगेगा कि मैं तुम्हारा साथ दे रही हूँ.
लेकिन क्या फायदा? तुम ये करोगे नहीं.
मैं- हाँ मैं नहीं करूँगा. मैं अपने समाज से अलग कुछ नहीं कर सकता.
दिवाली- वो तो मुझे पहले से ही पता था.
मैं- तुम्हे जहाँ जाना है वहां जाओ.
दिवाली- मैं तो इंतज़ार करुँगी, शायद कोई मेरी भावनाओ को समझे और उसे importance दे. और हाँ. अगर किसी ने भी ये किया, तो मैं हमेशा हमेशा के लिए उसी के पास चली जाऊंगी. फिर दुबारा किसी के पास नहीं जाऊंगी. फिर तुमलोग पटाखे तो छोड़ोगे, लेकिन वो ख़ुशी नहीं मिल आयेगी जो तुम ढूंढ रहे होओगे.
मैं- ऐसा कोई नहीं मिलेगा तुम्हे. मैं कोशिश करूँगा कम से कम अपने आस-पास के लोगो को मना लूँ, ताकि तुम्हे पटाखे की आवाज़ से डर न लगे, और तुम हमारे साथ रह सको.
दिवाली- तो क्या तुम ये पटाखे वापस कर रहे हो?
मैं- पागल है क्या? अब वो लेगा थोड़े ही. मुझे किसी और को देना पड़ेगा, और वो इसे फोड़ेगा ही. इसलिए अगली बार से.
दिवाली- भूल तो नहीं जाओगे न?
मैं- तब की तब देखेंगे. तुम फिर से याद दिला देना.
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उसकी train ने horn बजायी और वो चली गयी. कहा- अगर कोई मिल गया तो फिर मैं याद नहीं दिला पाऊँगी.
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