Monday, 5 March 2018

मेरी हाथ मे वो आखिरी सिगरेट........

सिगरेट से मेरी बातचीत........... Read it out, read it loud. Credit of everything goes to Shashikant Sharma just hit on my page link here.:- https://www.facebook.com/authorShashikantSharma कल एक आदमी ने मुझे कह दिया सिगरेट खरीद कर लाने के लिए. मुझे थोड़ा सा अजीब जैसा लगा. लेकिन क्या करता, आखिर सब लोग मुझे सरीफ समझते है और मुझपर भरोसा करते है. उनका भरोसा भी तो नहीं तोड़ सकता. गया, जैसे तैसे. खरीद भी लिया, सिगरेट. सिर्फ एक ही लेनी थी. उस आदमी को भी बहुत ज्यादा बेचैनी थी. तभी तो, जब मैंने मना किया लाने से तो भी उसने मुझे जबर्दस्ती भेजा.
खैर..... अब मैं सिगरेट लेकर दुकान से निकल चूका था. मैंने एक पैनी निगाह से अपने बाएं हाथ में पड़े उस सिगरेट की तरफ देखा. जी किया मसल के रख दूँ साले को. लेकिन नहीं. अपने पैसे का ख़रीदा हुआ नहीं था. इसलिए ये नहीं कर सकता था. वरना एक दूसरा खरीद कर फिर से ले जाना पड़ता. मैंने एक तिरछी नज़र से अपने बाएं हाथ में पड़े निर्लज्ज सिगरेट की तरफ देखा. उसने भी मेरी तरफ देखा. मैंने सोचा चलो, इसे ignore करता हूँ, लेकिन नहीं, बचना भी पॉसिबल नहीं है.
घूर क्यों रहे हो? - उसने पूछा.
तो और क्या करें? तुम्हारी आरती करें?- मैंने गुस्से से कहा.
गुस्सा नहीं करते. तुम्हे मेरी कीमत नहीं पता.- उसने कहा.
गरीबो के लिए दो रूपया. इससे भी ज़्यादा होगा अमीरों के लिए. लेकिन उससे मुझे नहीं मतलब?- मैंने कहा.
दो रुपये वाले से मतलब है?- उसने पूछा.
मेरी हाथ में आया हुआ तू आखिरी सिगरेट होगा.- मैंने कहा.
सौ सौ की रही शर्त?- उसने कहा.
मैं हर उस सख्स से शर्त नहीं लगाता जिसके कल का कोई पता न हो.- मैंने कहा.
hello, लोग जब मुझे जलाते है न, तो उन्हें मेरे लाल जलते हुए भाग में उम्मीद की किरण दिखाई देती है.- उसने कहा.
हाँ, जो जलने वाले के पास आती रहती है, सिमटती हुई, बेबस- लाचार औरत की तरह. मुझे ऐसी उम्मीद नहीं चाहिए.- मैंने कहा.
तो क्या हुआ अगर वो सिमट जाता है. आजतक सपने किसके सच हुए है?- उसने पूछा.
ये बात भी सही है की सपने सच नहीं होते. तो मैं सपने ही नहीं देखूंगा. लेकिन सिमटती हुई उम्मीद मुझे पसंद नहीं.- मैंने कहा.
लोगो को सुकून मिलता है इससे.- उसने कहा.
और तुम्हे?- मैंने पूछ लिया.
मतलब?- उसने पूछा.
तुम्हे एक दर्दनाक मौत मिलती है. है न? उम्मीद की किरण जब सिमटती हुई इंसान के करीब आ जाती है तो उसे लगता है कि वो गलती कर रहा है. फिर वो उसे या तो फेंकता है या फिर अपने ही पैरों से कुचल देता है.- मैंने कहा.
सीखो मुझसे, दुसरो के लिए त्याग करना.- उसने कहा.
तुम इसी के लिए बने हो. लेकिन कैसा रहेगा अगर तुम भी सही सलामत किसी show पीस की तरह बस सामने दीखते रहो और कोई तुम्हे छुए भी नहीं? तुम भी बचे रहोगे.- मैंने पूछा.
हमें कुर्बान होना अच्छा लगता है. - उसने कहा.
हम तारीफ करते है. लेकिन उस क़ुरबानी का क्या जिसके बाद कुछ बदले ही न?- मैंने पूछा.
मतलब?- उसने पूछा.
तुम्हारे जाने के बाद आदमी किसी और को use करता है और फिर छोड़ देता है,. फिर तीसरे को, फिर चौथे को. क्या मतलब है इसका? क्या फायदा है इस क़ुरबानी का? फिर रहने देते है न इस क़ुरबानी को. क्या ज़रूरत है इसकी?- मैंने पूछा.
मुझसे लोगों की ज़रूरत पूरी होती है.- उसने कहा,
कभी कभी लोग मुझे पाने के लिए बेताब हो जाते है.
मैंने देखा. वरना आज तू मेरे हाथ में नहीं होता.- मैंने कहा.
इसके पीछे कोई comment नहीं?- उसने पूछा.
एक तू ही नहीं है उनकी ज़रूरत पूरी करने वाला. तुम्हारे जैसे कई और है. तुम्हारे बाद भी उनकी ज़रूरत खत्म नहीं हो जायेगी. उनकी ये ज़रूरत कभी खत्म नहीं होगी. हमेशा ये बनी रहेगी. और हमेशा ये तुम जैसे कईयों को जलाते रहेंगे.- मैंने कहा.
मेरी धुंआ लोगो के दिल तक पहुँचती है.- उसने कहा.
तो खुश क्यों हो?- मैंने पूछा.
मुझे सुकून मिलता है जब मैं आशिको को उनकी महबूबा की कमी महसूस नहीं होने देता.- उसने कहा.
मतलब? मैंने पूछा.
जिन्हें प्यार में धोखा मिलता है न वो अपने दिल में अपनी महबूबा की जगह मुझे रखते है. मेरे धुंए को रखते है.- उसने कहा.
सही कहा. कोने कोने में तुम तो बैठ जाते हो उनके दिल के. धुंआ जो हो. है की नहीं?- मैंने पूछा.
हाँ.- उसने कहा.
और इसके बारे में क्या, जो तुम खून की साफ सफाई में रुकावट डालते हो?- मैंने पूछा,
यार, दोस्त की तरह साथ रहो तो बढ़िया लगेगा. लेकिन तुम तो यार मतलब हद करते हो. शरीर के काम में, खून की साफ सफाई में रुकावट डालते हो. 
तो इसमें हम क्या करें?- उसने पूछा.
सही है. इसमें तुम क्या कर सकते हो. तुम तो बस दिल में घुसकर हर जगह अपना कब्ज़ा जमाओगे. और तो और साला कार्बन वाले गुण के कारण साला तुम ठीक से खत्म भी नहीं हो सकते अगर एक बार भीतर चले गये तो.- मैंने कहा.
मुझे इतनी बड़ी बड़ी बातें समझ में नहीं आती. मुझे बस इतना आता है कि मेरी वजह से suicide कम हो रहे है.- उसने कहा.
बहुत बढ़िया रक्षक का काम कर रहे हो भैया. लेकिन साला सबकी गालियाँ सुनकर, धीरे धीरे दवाई की गोलियां खाकर, हजार रोग लेकर मरने से बढ़िया है कि suicide ही कर लें.- मैंने कहा.
हद है यार, मतलब अगर तुम्हारा बस चले तो तुम तो आदमी को जीने ही नहीं दोगे?- उसने कहा.
tension लेकर जीना है तो मर जाओ साला. उससे बढ़िया कुछ नहीं है अभी.- मैंने कहा.
तो यार ये जाकर फैक्टिरियो में समझाओ न?- उसने कहा.
पहले 500-1000 का नोट लोगो ने लेना बंद किया तब जाली कंपनियों ने जाली नोट बनाने बंद किये थे.- मैंने कहा.
मुझे इससे फर्क नहीं पड़ता. तुमने जितना कहा मुझे कुछ भी समझ में नहीं आया.- उसने कहा.
तो ठीक है. मैंने कहा और मैंने भी उसकी ओर देखना बंद कर दिया. ..............................................................................................................................................................................................................
क्या हुआ बेटा? मेरा सिगरेट कहाँ है?- उन्होंने पूछा.
uncle ये आपके पैसे?- मैंने उन्हें अपने जेब से निकल कर 5 रुपये का सिक्का दिया.
लेकिन मैंने तो सिर्फ दो रुपये का सिक्का दिया था?- उन्होंने कहा.
हाँ अंकल लेकिन....- मैं उन्हें बताना चाहता था कि मैंने वो सिगरेट फेंक दी. लेकिन इसके पहले की मैं उन्हें कुछ बता पाता, वो खुद ही बोल पड़े.
कोई बात नहीं, मुझे अच्छा लगा कि तुमने मेरे पैसे से सिगरेट खरीद कर पि ली. अब से हम दोनों सिगरेट वाले पार्टनर रहेंगे.- उन्होंने कहा.
नहीं- मैं जोड़ से चिल्लाया. ________________________________________________________________________________________________________________________
और इसके साथ ही मैं अपने सपने से बाहर आया. वो बोले- अगर नहीं लाना है तो सीधा बोल दे, चिल्ला क्यों रहा है? .. .. .. for more, visit to the upper link or follow me on https://www.facebook.com/shashiks777

Thursday, 1 March 2018

दीवाली से मेरी बातचीत.



दिवाली से मेरी बातचीत:-
पूरा पढियेगा please, अगर अच्छा न लगे तो ख़राब भी नही लगेगा
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Words And Writing Credit:-
Shashikant Sharma
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कल दिवाली दिख गयी मुझे. अपने आरा station पर. मैं गया था पटाखे लेने तो. मैंने उसे हाथ हिलाकर उसका ध्यान खिंचा.
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मैं- अरे दिवाली तुम? तुम आ भी गयी.
दिवाली- नहीं, मैं जा रही हूँ.
मैं- कहाँ?
दिवाली- जहाँ मेरी कदर हो.
मैं- मतलब? क्या हम तुम्हारी कदर नहीं करते?
दिवाली- नहीं करते. देखो न, तुम्हारे हाथ में पटाखा है.
मैं- पर ये सब तो तुम्हारे लिए है. तुम्हारे आने की ख़ुशी जाहिर करने के लिए.
दिवाली- या फिर सबको बताने के लिए की दिवाली आ गयी. सही है?
मैं- एक ही बात है न दिवाली?
दिवाली- एक ही बात कैसे है. क्या तुम सबको बताओगे तभी पता चलेगा कि मैं आयी हूँ?
मैं- ऐसा नहीं है दिवाली. कभी कभी हमारी तीव्र भावनाएं हमसे ये करवाने लगती है.
दिवाली- और मेरी कुछ भावनाएं नहीं होती?
मैं- क्या? तुमने कभी कहाँ ही नहीं.
दिवाली- तुमलोगो ने कहने लायक छोड़ा ही क्या है?
मैं- मुझे बताओ मैं कोशिश करूँगा.
दिवाली- सबसे ज्यादा पटाखे तुम्हारे हाथ में ही दिख रहे है. तुम क्या ख़ाक कोशिश करोगे?
मैं- इन पटाखों को मैं वापस कर सकता हूँ तुम्हारे खातिर.
एक तुम्हारे वापस करने से क्या होता है?
मैं- शायद लोग मेरी बराबरी करें.
दिवाली- कुछ लोग तो ये भी सोचते है कि जिन्होंने इतना मेहनत करके पटाखे बनाये है उन्हें दो रुपये दे देने से कुछ ख़ाक नहीं बदलेगा.
मैं- यार तुम point पर आओ न कि तुम चाहती क्या हो?
दिवाली- क्या तुमने कभी ये सोचा है कि मैं हर साल एक दिन के लिए ही क्यों आती हूँ?
मैं- देखा है, पर सोचा नहीं है कभी कि क्यों?
दिवाली- मुझे सफाई और शांति पसंद है. मुझे बच्चों की ख़ुशी अच्छी लगती है.
मैं- क्या मतलब है? करते तो है सफाई हम.
दिवाली- और फिर गन्दा भी करते हो. कह दो कि नहीं करते. पटाखों की बारूद और उनके covers कहाँ जाते है. धरती की gravity इतनी ज्यादा है कि उड़ते तो नहीं है. धरती पर ही वापस आ जाते है. और ये धूम-धड़ाक, और बम गोले की आवाज़, ये मुझे काटने दौड़ती है.
मैं- तो, फिर अगले दिन सबकुछ ठीक हो जाता है.
दिवाली- लेकिन मुझे ये कौन भरोसा दिलाये कि अगले दिन सब कुछ ठीक हो ही जायेगा? जब मैं आती हूँ तो तुमलोग पटाखे छोड़ने लगते हो. मुझे डराने की कोशिश करते हो.
मैं- नहीं, ये गलत है. हम डराते नहीं है.
दिवाली- सब कहते है. लेकिन सच्चाई यही है. जैसे ब्याही बेटी मायके पर बोझ होती है वैसे ही मैं भी तुम लोगो पर बोझ लगती हूँ. और इसलिए तुमलोग मुझे डराने की कोशिश करते हो ताकि मैं जल्दी से वापस चली जाऊं.
मैं- लेकिन तुमने कहा कि तुम्हे बच्चों की ख़ुशी अच्छी लगती है. और पटाखे छोड़कर बच्चे खुश होते है.
दिवाली- क्योंकि शुरू से उन्होंने यही देखा है. अगर दिवाली का मतलब सिर्फ दिए जला कर संसार को रौशन करना है तो ये हर रोज हो सकता है. और मैं भी हर रोज तुम्हारे साथ रह सकती हूँ. है कि नहीं?
मैं- तुम्हारी बातें मेरी समझ से बाहर की चीज़े है. हमने जो शुरू से देखा है हम तो वही करेंगे.
दिवाली- वही तो मैं कह रही हूँ. जाकर अपने गाँव में सबको बता देना कि दिवाली आयी थी पर हमारे गाँव नहीं आयी. वो शांति ढूंढने चली गयी दूसरे गाँव.
मैं- अच्छा इस बात का क्या भरोसा कि अगर हम पटाखे न छोड़े तो तुम यहां पर रहोगी? हमारे साथ, हमेशा हमेशा के लिए?
तुम हर रोज सिर्फ दिए जलाकर देखो, तुम्हे लगेगा की मैं तुम्हारे साथ हूँ. तुम सिर्फ अपने नहीं, दूसरे के घरों में भी रौशनी करके देखो, लगेगा कि मैं तुम्हारा साथ दे रही हूँ.
लेकिन क्या फायदा? तुम ये करोगे नहीं.
मैं- हाँ मैं नहीं करूँगा. मैं अपने समाज से अलग कुछ नहीं कर सकता.
दिवाली- वो तो मुझे पहले से ही पता था.
मैं- तुम्हे जहाँ जाना है वहां जाओ.
दिवाली- मैं तो इंतज़ार करुँगी, शायद कोई मेरी भावनाओ को समझे और उसे importance दे. और हाँ. अगर किसी ने भी ये किया, तो मैं हमेशा हमेशा के लिए उसी के पास चली जाऊंगी. फिर दुबारा किसी के पास नहीं जाऊंगी. फिर तुमलोग पटाखे तो छोड़ोगे, लेकिन वो ख़ुशी नहीं मिल आयेगी जो तुम ढूंढ रहे होओगे.
मैं- ऐसा कोई नहीं मिलेगा तुम्हे. मैं कोशिश करूँगा कम से कम अपने आस-पास के लोगो को मना लूँ, ताकि तुम्हे पटाखे की आवाज़ से डर न लगे, और तुम हमारे साथ रह सको.
दिवाली- तो क्या तुम ये पटाखे वापस कर रहे हो?
मैं- पागल है क्या? अब वो लेगा थोड़े ही. मुझे किसी और को देना पड़ेगा, और वो इसे फोड़ेगा ही. इसलिए अगली बार से.
दिवाली- भूल तो नहीं जाओगे न?
मैं- तब की तब देखेंगे. तुम फिर से याद दिला देना.
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उसकी train ने horn बजायी और वो चली गयी. कहा- अगर कोई मिल गया तो फिर मैं याद नहीं दिला पाऊँगी.
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