Monday, 21 December 2020

Dear मेरी होने वाली

 I don't know, but hope you would have read my previous part of this note which is titled 

Dear Future Wife.... I want to add some further notes in that proposal.


I don't know who you are, where you are, what are you doing, how will you look like, what family do you belong to, what type of husband do you wish to have, what type of guys have you dated or not, and many un-answered questions. I don't know, neither I want to know. I don't expect you to be my kind. This is the reason I don't have yet created the list of characteristics which describe what is my kind.


I don't want you to wear saree all th


मुझे नहीं पता, लेकिन मैं उम्मीद करता हूँ कि तुमने इसके पहले वाले part को जरुर पढ़ा होगा जिसका शीर्षक है  Dear Future Wife.... मैं उस इश्तिहार में कुछ और भी जोड़ना चाहता हूँ.


मुझे नहीं पता तुम कौन हो, कहाँ हो, क्या कर रही हो, कैसी लगोगी, कैसे खानदान से नाता है, कैसे शौहर की दुआ करती हो, कैसे लड़को को date कर चुकी हो या नहीं किया है, और भी बहुत सारे सवाल जिनका जवाब फ़िलहाल किसी के पास नहीं है. मैं नहीं जानता, और जानना भी नहीं चाहता. मैं उम्मीद नहीं करता कि तुम मेरे जैसी हो. यही वजह है कि मैंने अभी तक उन किस्मों की list नहीं बनायीं है, जिससे ये पता चले कि मुझे अपनी होने वाली में क्या पसंद है.


हाँ, अगर इसकी वजह पता करने का मन करे तो ये मान लेना कि मुझे नहीं पसंद है किसी से उम्मीदें करना, खास कर उससे, जिसको मैंने देखा तक नहीं, जिसको मैंने सुना तक नहीं, जिसको मैंने जाना नहीं, और जिसको मेरे बारे में नहीं पता. क्यूंकि मेरा खुद का तजुर्बा ये कहता है कि इंसान को सबसे ज्यादा तकलीफ़ उसके अपने उम्मीद के टूटने से होता है.


पता है, भरोसा और उम्मीद में यहीं फ़र्क है. भरोसा सिर्फ उसी से होता है, जिसको आप जानते हों, लेकिन उम्मीद किसी से भी हो जाती है. और मैं भरोसा के रूप में उम्मीद करना चाहता हूँ, और बहुत सारे मसलों में तो मैं उम्मीद करना ही नहीं चाहता. मसलन अगर मैं निकाह पढ़ भी लूँ, तब भी मैं मेरी बीवी से ये उम्मीद नहीं करूँगा कि वो हर रोज़ मुझे चाय बना कर दे. क्यूंकि ये उम्मीद मेरे दिलो-दिमाग में घर कर जाएगी, और मैं उस रोज़ भी बीवी के हाथ की चाय का इंतज़ार करूँगा, जिस दिन वो चाय देने के हालातों में नहीं होगी.


उम्मीद को भरोसा का रूप लेने में जितना वक़्त लगता है, उससे कम वक़्त लगता है उसे ज़िद्द का रूप लेने में. और ये ज़िद्द हमारे रिश्ते को खराब कर देंगे. इसलिए Dear मेरी होने वाली, मैं तुमसे ज्यादा कुछ उम्मीद नहीं कर रहा. तुम जो भी हो, जैसी भी हो, मुझे स्वीकार है. हाँ, मैं तुम्हें ज़रूर अपने परिवार के रीती-रिवाजों में बाँधने की कोशिश कर सकता हूँ. मेरा यक़ीन करना, मुझे शौक नहीं होगा ऐसा करने का. हाँ, पर मैं इतना उम्मीद ज़रूर करूँगा कि तुम परिस्थियों को समझोगी और उसके अनुसार अपना आचरण करोगी.


Dear मेरी होने वाली, मैंने अपने पहले proposal Dear Future Wife... में भी बताया है, कि मुझे प्यार का तजुर्बा नहीं है. हाँ, लेकिन जो भी कहीं पर सुनता हूँ, जो लोग मुझसे कहते हैं, जो लोग अपना तजुर्बा बताते हैं, जो कुछ फिल्मों और serials में देखता हूँ, उससे अंदाज़ा ज़रूर लगाता हूँ कि कैसा लगता होगा, जब किसी की हिफ़ाज़त करने वाला, किसी की फ़िक्र करने वाला, किसी की ख़ुशी चाहने वाला कोई और है, और उसे पता भी है. कई बार लोग मुझसे पूछते हैं, आखिर इतने real feeling को लिख कैसे लेते हो?


मैं तुम्हारे सवालात खड़े करने से पहले तुम्हें बताना चाहता हूँ, कि मैंने जो कुछ भी देखा है या सुना है, बस उतना ही मुझे आता है. और ये मेहरबानी है मेरे दोस्तों की जिन्होंने मुझे इर्ष्या दिलाने के लिए ही सही, लेकिन अपने-अपने साथ हुए वाक़ये से वाकिफ़ कराया है. अगर तुम चाहो तो ये मेहरबानी तुम भी कर सकती हो. तुम भी अपने कल, परसों, तरसो सब कुछ मुझसे बता सकती हो. और हाँ, अगर तुम्हें लगे कि मैं बुरा मान जाऊंगा, तो तुम अपनी कहानी को filter भी कर सकती हो. लेकिन तुम मुझसे उम्मीद कर सकती हो कि मुझे बुरा नहीं लगेगा. क्यूंकि सबका अपना-अपना एक कल होता ही है.


हालाँकि इसके साथ-साथ मैं ये भी कहूँगा कि तुम शक़ भी कर सकती हो कि मैं झूठ बोल रहा हूँ, मसलन सब लोग करते हैं. उम्मीद और शक़ की शक्लें एक जैसी होती हैं. लेकिन उम्मीद हमेशा उम्मीद करने वाले के पक्ष में होता है, और शक़ पक्ष में भी हो सकता है और विपक्ष में भी. हाँ पर यहाँ पर मैं तुमसे उम्मीद ज़रूर करूँगा कि अपने शक़ को ज़ाहिर नहीं करोगी किसी और के सामने. मन ही मन शक़ को दूर करने के प्रयास जरुर कर सकती हो. और हाँ, तुम्हें हक़ है कि तुम मेरे झूठे साबित होने पर मुझसे ख़फ़ा हो, मुझसे नाराज़ हो और मुझे कभी माफ़ ना करो.


हाँ मेरी ख्वाहिश ज़रूर है कि कोई मेरी भी फ़िक्र करे, कोई दुआ करे मेरे सलामती, मेरी ख़ुशी, मेरे मुलाक़ात का. लेकिन मेरी ये ख्वाहिश कोई और पूरी करे, ये मेरी ख्वाहिश का हिस्सा कभी ना था, और ना कभी होगा. लेकिन ये तुमसे मेरी उम्मीद नहीं है. क्योंकि ज़रूरी नहीं कि तुम मेरी हर ख्वाहिश पूरी करो. तुम्हें हक़ है ज़िन्दगी को अपने हिसाब से जीने का. और मैं इतना उम्मीद ज़रूर करूँगा तुमसे कि तुम मुझसे ज़ाहिर करो तुम्हारी ख्वाहिशें और वो सारी उम्मीदें जो तुमने संजो रखी हैं.



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