Wednesday, 23 October 2019

एसो छठ में अइब नू......

एक मां का अपने बेटे को फोन कॉल
एक मां का अपने बाहर रह रहे बेटे को फोन कॉल


नमी में त ना अईल काहाला के बाद भी,
असरा तोहार देखत रही दशहरा के बाद भी,
लेकिन अबकी बे बॉस अगर ना दिहे छुट्टी त
कवनो इमोशनल बाहाना बनइब नू??

आ छठ आ गईल बा कि एसो छठ में अइब नू??!!
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चलल नईखे जात अब, दरद बा गोड़ में,
उठे के मन नईखे करत, खटिया पर से भोर में,
घर के साफ सफाई कसहू कर देनी अकेले बाकी,
छत पर दिवाली के दिया जरइब नू??

आ छठ आ गईल बा कि एसो छठ में अइब नू??!!
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बाकी लोग दिवाली में, आवे लऊवे घरे,
तीन साल से नईख आवत, बाड़ तू बहरे,
धनतेरस में सोचले बानी लेहब एगो कराही,
गोधन के दिन त अमर पीठ खईब नू??

आ छठ आ गईल बा कि एसो छठ में अइब नू??!!
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तोहारा बाबूजी से कही कुछ फल त मांगा लेब,
घाट नाहियो रही त कतही चटाई बिछा लेब,
बाकी जाता पिसे के बेरा जब गाइब हमहू गीत त,
आपन नाम सुन-सुन के मस्कुरइब नू??

आ छठ आ गईल बा कि एसो छठ में अइब नू??!!
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रतिया में गांव घर में के बांटी खरना के खीर,
जानते बाड़ गांवे मंदिर पर केतना होखेला भीड़,
पंडिजी जब देरी करिहे अरघ देवे के बेरा पर त,
तू अपना हाथे हमरा के अरघ दियवईब नू??

आ छठ आ गईल बा कि एसो छठ में अइब नू??!!
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पतोह त हमार हइले नईखे कि लागी मोरा मन,
तीन दिन बुझ जा बबुआ जे देखहू के ना बा अन्न,
तू रहब त छने सेल्फी लेब आ छने हंसी-मज़ाक करब,
कवनो तरी हमार मन त तू लगइब नू??

आ छठ आ गईल बा कि एसो छठ में अइब नू??!!
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Monday, 19 August 2019

दोस्ती for me...

confession
Ek Confession Raat Ke Naam.

चलो आज एक confession करता हूँ। वैसे तो मैं ज़्यादातर अपने confession अँग्रेजी में ही करना पसंद करता हूँ, ताकि किसी को समझ में ना आए। लेकिन ये वाला हिन्दी मे होगा। ताकि सबको समझ मे आए, और पूरा पूरा समझ मे आए। क्यूंकी ये दोस्त के बारे मे है, और पढ़ने वाले भी मेरे दोस्त ही है, और मैं इतना अच्छा नहीं लिखता अँग्रेजी की सभी लोग समझ जाए।
मेरे बहुत सारे दोस्त है। बहुत सारे मतलब बहुत सारे। बिलकुल। इसीलिए सभी लोग ताज्जुब भी रहते है। मेरे जैसे और भी बहुत लोग है, जिनको बहुत सारे दोस्त होते है। लेकिन सबलोग सबके साथ बराबर समय नहीं दे पाते। मैं खुद नहीं जानता मैं ये कैसे कर लेता हूँ। लेकिन जो भी है वो है।

घर में सबलोग परेशान रहते है मेरे इस बात से कि मैं अपने भविष्य के साथ मज़ाक कर रहा हूँ। अच्छे अच्छे लोग भी यही सलाह दे जाते है कि दोस्ती career बनाने के पहले थोड़ा सीमित ही रखना चाहिए। जब लाइफ मे कुछ कर लो तो फिर अपनी कमाई पर करते रहना दोस्ती, बनाते रहना दोस्त।

लेकिन मैं नहीं मान सका। खुद को नहीं रोक पाता हूँ फोन करने से, WhastApp या Facebook पर मैसेज भेजने से, पोस्ट करने से। यहाँ तक कि Facebook पर मेरा एक एल्बम भी है, दोस्तों के नाम से। और ग्रुप तो कई सारे बनाए और खतम किए। यही नहीं, कई ऐसे सेक्रेट्स भी हैं मेरे जिसे मैंने बचा कर रखा है। कई बार जब दोस्तों की किसी बात का बुरा लगा है तो मैंने खुद को संभाला जरुर है, लेकिन उस वजह को भी संभाल कर रखा है, और कभी कभी जब उनको देखता हूँ तो बड़ा ही तकलीफ होता है। लेकिन इन तकलीफ़ों को मैंने ही पाल रखा है।

अभी कुछ दिन पहले ही मैंने अपने सभी दोस्तों से एक प्रॉमिस किया था, कि उस दिन के बाद से कोई भी सेक्रेट्स नहीं रखूँगा। बोलने से पहले सोचुंगा नहीं कि बोलने के बाद सामने वाले को बुरा लगेगा या अच्छा लगेगा। बोलने से पहले ये नही सोचुंगा कि ये मुझे बोलना चाहिए या नहीं। बात करते टाइम कभी भी दोस्तों के किसी बात का बुरा भी लगा तो उसे उसी टाइम बता दूंगा, रिकॉर्डिंग करके नहीं रखूँगा, और ना ही स्क्रीनशॉट रखूँगा। क्यूंकी कभी कभी जब बाद मे उन सब रिकॉर्डिंग को सुनता हूँ, या स्क्रीनशॉट को देखता हूँ, तो बहुत ही तकलीफ होती है। कई बार तो मुझे ये लगने लगा है कि दुनिया मे सब फरेबी है। जबकि बाद मे गहराई से सोचने पर मेरी भी गलती निकाल ही जाती है।

यही वजह है। शुरू शुरू में मैं बहुत ही ज़्यादा या फिर कहें कि एक Introvert हुआ करता था। और पढ़ाई का कीड़ा भी। इसके अलावा मुझे कविता कहानी का शौक था, और भगवान का दिया हुआ एक talent था, painting और drawing का। सब इसीलिए मुझे बहुत पसंद करते थे। पढ़ाई में थोड़ा अच्छा होने के कारण स्कूल से लेकर हाइ स्कूल तक मेरा एक अलग ही पहचान था। लेकिन स्कूल में ही कुछ दोस्त मिल गए। उन सबमे मेरा एक ही सबसे करीबी दोस्त था। उसके साथ जितना बन पड़ा मैंने मस्ती से लेकर खेल कूद और पढ़ाई सब की। लेकिन हमारी दोस्ती को लगी नज़र, वो भी लड़कियों की नज़र। और आंठ्वी क्लास तक आते आते हमारी दोस्ती का break-up हो गया। वो पढ़ने के लिए हाइ स्कूल चला गया, क्यूंकी वो सीनियर था, और मैं रह गया अपने मिडिल स्कूल मे ही।

दोस्ती यूं ही नहीं टूटी थी। ये एक शजिस थी। कईयों ने आकर रोज मुझसे मेरे उस दोस्त के बारे मे एक गलत धारणा देना शुरू कर दिया। रोज मुझे उसकी शिकायत सुनाते, रोज उससे दूर रहने को बोलते, रोज उसको लेकर कोई नयी कहानी बनाकर लाते। और इस तरह जब उसने मिडिल स्कूल से अपना TC लिया, उस दिन से हमारी और उसकी दोस्ती बंद।

मैं देखता था उसकी आँखों मे एक उम्मीद, कि शायद मैं बोल पड़ूँ उससे। लेकिन ये हो नहीं पाया। मेरे भीतर जो उसके प्रति एक घृणा कि भावना भरी हुई थी, उसने मुझे उससे बोलने ही नहीं दिया। उसने मुझे बराबर शक्ति दिया, कि उसकी मासूमियत को नज़रअंदाज़ करके मैं रोज उसके रास्ते से आगे बढ़ जाता था, और वो मेरा चेहरा देखता रह जाता था। और मेरा स्कूल मे एक रोब था। मेरा attitude मेरे औकात से ज़्यादा था। ये बात मेरे दोस्त को भी पता था। इसलिए उसने भी कभी पहल नहीं किया। उसने कभी हिम्मत ही नहीं किया मुझसे बात करने की।

इसके बाद मेरे कुछ और दोस्त हुए। उसी एक साल मे। मिडिल स्कूल मे ही जब मैं अकेला पड़ गया तो मैंने कुछ दोस्त बना लिए। लेकिन हर महीने मेरी दोस्ती टूटती थी, और फिर एक दोस्त बनता था। फिर दरार आती, फिर दोस्ती होती, फिर दरार आती। एक दोस्त के जाते ही दूसरा दोस्त, फिर दूसरे के बाद तीसरा। और मेरे उस जिगरी दोस्त के हाइ स्कूल जाने के बाद सिर्फ एक साल में मैंने करीब 26 दोस्त बनाए। और 26 में से पूरे 26 से break-up भी हुआ और फिर 6-7 से वापस दोस्ती हो गयी। लेकिन फिर मैं भी हाइ स्कूल में चला गया। और दोस्ती थोड़ी कम हो गयी।

कुछ का ये भी मानना है कि मिडिल स्कूल में मेरा किसी लड़की पर crush था। और उससे अपनी setting करवाने के लिए मैं लड़को को अपना दोस्त नहीं, बल्कि post-man बना रहा था। इसीलिए मेरी दोस्ती टूटती भी थी, और दोस्ती होती भी थी। लेकिन मेरे भाई, पहली बात तो ये, कि मुझे उस समय पता भी नहीं था कि crush क्या होता है। और मैं अपनी पढ़ाई और अपने passion को लेकर इतना सिरियस था, कि दूसरा कुछ मुझे दिख ही नहीं रहा था। और गाँव की लड़कियों के बारे में ऐसा कौन सोचता है भला???
दूसरी बात ये, कि जैसा कि मेंने बताया, कि मेरा attitude मेरे औकात से ज़्यादा था। इसलिए लड़कियां भी ना तो मुझसे बोलना चाहती थी, और ना ही crush जैसा कुछ था।

मिडिल स्कूल से निकलने के बाद लड़के पढ़ाई को लेकर थोड़ा सिरियस हो जाते है। और फिर मैं तो अपने पहली क्लास से ही सिरियस था पढ़ाई के मामले में। तो मेंने दोस्ती को साइड किया, और फिर से पढ़ाई शुरू। फिर से एक introvert वाली life। एक boring लाइफ। कारण ये भी था कि नए लोग मिल रहे थे। उनसे बात शुरू करने में थोड़ा अजीब महसूस हो रहा था। और इस तरह अपने 2 साल के हाइ स्कूल को पूरा करते करते मैं वापस से एक introvert हो चुका था।

फिर intermediate में मेरे कुछ दोस्त बने। वो दोस्त भी उन्हीं के वजह से बने। मैंने उनसे दोस्ती नहीं की बल्कि उन्होने मुझसे दोस्ती की थी। ये दोस्ती अभी तक चल रही है। लेकिन आजकल (आप पोस्ट की date ज़रूर देख लें) लग रहा है कि हमारी दोस्ती में थोड़ी सी डगमगाहट आ गयी है। लग रहा है कि जैसे सबलोग अलग हो रहे हैं। लग रहा है कि जैसे मैं सबसे दूर हो रहा हूँ, और लगा रहा है जैसे मेरी वजह से हमारा ग्रुप ही खतम हो जाएगा।

मैं थोड़े दिन के लिए दिल्ली गया था, तो मैंने सबको बोल दिया था कि बात नहीं हो पाएगा, टाइम नहीं मिल पाएगा। वजह अगर कहीं घूमने गए हो तो घूमोगे, फोटो-सेलफ़ी वगैरह लोगे। फोन पर बात थोड़ी कारोगे। और चूंकि वहाँ पर हमारे काफी सारे रिश्तेदार भी हैं, तो उनके पास जाओगे तो थोड़ा गाँव घर कि बात करोगे, थोड़ा हंसी मनोरंजन होगा। फोन पर लगे रहोगे तो लोग क्या कहेंगे। तो मैंने सबको बोल दिया कि दिल्ली से वापस आ जाऊंगा तो शायद बात हो पाएगी, और वहाँ भी अगर टाइम मिल गया तो बात कर ल्ंगा।
जब मैं गाँव आया तो क्लास का जितना भी छुट गया था, वो सब recover करने के चक्कर में टाइम नहीं दे पाया। और फिर मेरा फोन गुम हो गया, तो इस वजह से भी थोड़ा mentally disturbed हूँ। मैं अभी तक खुद को उस हादसे से वापस नहीं ला पा रहा हूँ। तो ऐसे में मैं नहीं समझता कि अगर मैं दोस्तो को समय नहीं दे पा रहा हूँ तो मेरी कहीं गलती है।

लेकिन, मेरे कुछ दोस्तो ने इस बात कि गांठ कर ली है, कि भाई, दिल्ली जा रहे हो तो बिज़ि रहोगे, और गाँव आ गए तब भी बिज़ि ही हो। अब तुम बिज़ि इंसान हो गए हो। हमें ना तो मैसेज करते हो, न फोन करते हो, ना ही हमारे मैसेज का पहले जैसे तुरंत रिप्लाइ करते हो।

हाँ भाई, मैं नहीं करता रिप्लाइ, और नहीं करता फोन। और अगर तुम्हें लगता है तो ठीक है, नहीं करनी मुझे किसी से बात। वैसे भी मैं एक Introvert था, और बीच में भी कुछ दिन Introvert की लाइफ मेंने जी है, और आगे भी जी सकता हूँ। मेरी दोस्ती अब नहीं चलती। क्यूंकी मैं किसी को दोस्त बनाना ही नहीं चाहता। और अगर दोस्त बनते भी है तो डर लगा रहता है break-up होने का। इसीलिए कभी कभी sacrifice भी कर लेता हूँ, उनके किसी किसी बात का बुरा भी नहीं मानता, और अगर मानता भी हूँ तो उसे जाहीर नहीं करता और खुद में ही रख लेता हूँ।

मेरा कभी भी कोई एक दोस्त नहीं हुआ है। क्यूंकी जब भी मैंने सिर्फ एक दोस्त से ज़्यादा दोस्ती निभाई है, तब तब हमारी दोस्ती का break-up हुआ है। मैं इसी लिए एक से ज़्यादा दोस्तों से दोस्ती करता हूँ, और सबके साथ बराबर टाइम देता हूँ। ताकि दोस्ती बनी रहे, और किसी की नज़र ना लगे।

और नज़र लगने का कुछ नहीं है। मैं खुद ही बहाने ढूँढता हूँ, शक करता हूँ दोस्तों पर, उनके साथ कभी कभी बेकार सा मज़ाक कर देता हूँ जो मुझे नहीं करना चाहिए, और कई बार तो गुस्सा भी हो जाता हूँ उनकी बातों पर, उनके plan पर मैं कभी agree नहीं करता और खुद को हमेशा सही साबित करने की कोशिश करता रहता हूँ। इसीलिए मेरी दोस्ती अब नहीं चलती।

Bro, मुझे पता है कि मैं हर बार सही नहीं हो सकता हूँ। ये तो तुमलोग हो जिसने मुझे अभी तक अहसाह नहीं होने दिया और ज़रा सा भी महसूस नहीं होने दिया मेरे पहले वाले दोस्त की कमी का। लेकिन बीते कुछ दिनों से फिर से यही लग रहा है कि एक बार फिर से मेरा कोई भी दोस्त नहीं होगा, और फिर से मेरी दोस्ती टुकड़ों में होगी, थोड़े थोड़े दिनों के लिए। और अगर ऐसी नौबत आई ना, तो बता रहा हूँ मैं, कि मेरी किसी से दोस्ती नहीं होगी।

बाकी बस, इतना ही था। मुझे भी नहीं पता ये लिखने के पीछे क्या कारण है। मैंने ये क्यूँ लिखा, मुझे खुद नहीं पता है। तुमलोगों को जो वजह मिले, समझ लेना, मुझसे पूछना मत।

Saturday, 25 May 2019

नमकीन इश्क़

The title is now changed from KIS-LIYE to NAMKEEN ISHQ.

क्लास में बैठ कर बहुत पहले से, एक एक सेकंड मेरा इंतज़ार करती थी वो,
मुझे एहसास नहीं हुआ कभी कि मन ही मन मुझसे प्यार करती थी वो,
मेरे दोस्त मेरा नाम ज़रा ज़ोर से लिया करते थे उसके आसपास होने पर,
कभी चिढ़ती थी तो कभी न मुस्कुराने की कोशिश हर बार करती थी वो,

उसे लगा था कि मैं शायद समझ जाऊंगा उसके एकतरफा प्यार को,
ये जानकर कि एक पागल से मोहब्बत की थी उसने पागलों कि तरह,
और भाई हम एक तो इश्क़ से अनजान थे, दूसरे इश्क़ से खफा भी थे,
हम तो अकेले ही ठीक हुआ करते थे, घूमते बरसते बादलों की तरह,

मैंने खुद को बचाए रखा था, उसके इश्क़ से भी, उसके हुस्न से भी,
मगर पिघल गया उसकी आँखों में, उम्मीद और मोहब्बत देखकर,
लेकिन मेरा पिघलना भी पिघलना नहीं बल्कि मेरा बदलना जाना था,
आखिर उसे शब्द देने पड़े थे मेरी नासमझी और मेरा शराफत देखकर,

हाये रे उसकी हल्की भूरी आंखे, हाये रे उसके भूरे भूरे से बाल,
उसके सुर्ख़ होंठ और होंठ के ऊपर एक छोटी सी प्यारी सी नाक,
उसने कोई nosepin नहीं लगाए थे उस दिन शायद या मुझे याद नहीं,
उसका इस कदर सुंदर होना हम सब के  लिए था एक इत्तिफाक़,

कहते हैं कि जो आया है वो एक दिन जाएगा ही, ये नियम है दुनिया का,
वो चली तो गयी मगर खुद को मेरे भीतर छोड़ गयी थी जाते हुए,
एक पागल सा जिसने formality के लिए भी रुकने को नहीं कहा,
एक बहादुर सी वो, जिसने दिल की बात कह दी थी घबराते हुए,

उसकी बेअसर मोहब्बत ने उसके जाने के बाद असर किया था मुझपे,
वो सब अब महसूस हो रहा था, जो कभी नहीं हुआ था उसकी संगत से,
मुसकुराता चेहरा से लेकर उसकी भिंगी हुई आंखे भी याद आती थी,
ये मोहब्बत है जनाब जिसने किसी को नहीं छोड़ा है अपनी रंगत से,

तुमने तो तुम्हारी हिस्से की मोहब्बत भी अभी पूरी नहीं करी है,
अभी तो मेरे हिस्से की पूरी की पूरी मोहब्बत करनी बाकी है,
मुझे लगता है तुम्हें वापस आना चाहिए हमारे नमकीन इश्क़ के लिए,
अभी तो तुम्हें मुझसे और मुझे तुमसे शिकायत करनी बाकी है. 

Thursday, 18 April 2019

गाँठ (the Knot).....

Ropes
The knot between two ropes.......

अपने भीतर समेटे हुए, कुछ हसीन सपनों को,
कुछ और नहीं बस, एक छोटा सा गाँठ हूँ मैं,
कुछ खूबसूरत यादों को, जो ताज़ा कर दे फिर से,
गाँठ की तरह बंधी वो, हर छोटी सी बात हूँ मैं,

वो गलतफहमियाँ, जो हो गयीं थी हमारे दरम्यान,
कतरा कतरा ज़िंदा है, मुझमें उन हालातों का,
दर्द को छिपा कर, रखने वाला भी मैं गाँठ हूँ,
मैं गाँठ हूँ तुम्हारी हंसी के, पीछे छुपे खयालातों का,

मैं गाँठ हूँ बिखरे रिश्ते को, नयी उम्मीद देने वाला,
मैं गाँठ हूँ जिसके बंधने से, कुछ रिश्ते आगे बढ़ते हैं,
मैं गाँठ हूँ प्रेम का भी और, मैं नफ़रतों का गाँठ भी हूँ,
मेरे होने से ही मिलते हैं, मेरे होने से ही बिखरते हैं,

जो खोलोगे मुझे तो, बंट जाओगे दो हिस्सों मे तुम,
मन के कोने में दबी हुई, कोई तीखी सी आवाज़ हूँ,
तुम्हारे रिश्तों को तबाह करने को मैं अकेला ही काफी हूँ,
सिर्फ गांठ ही नहीं हूँ बल्कि, मैं कोई गहरी राज़ हूँ,

मैं वो गाँठ हूँ जिसमें तुम सँजोते हो, ज़िंदगी के किस्से,
तुम्हारी खुद की उलझनों ने, मुझे गाँठ बनाया है,
मैं गाँठ हूँ कुछ लोगों के, संदेह भरे निगाहों का,
मैं वो गाँठ हूँ जिसने अक्सर, भरोसा को हराया है,

मैं गाँठ हूँ आत्मविश्वास का, मैं हौंसले का गाँठ हूँ,
मैं जोड़ता हूँ दिल भी, सिर्फ रस्सियाँ नहीं जोड़ता,
मैं गाँठ हूँ तुम्हारी दोस्ती का, तुम्हारे सभी रिश्तों का,
मैं गाँठ हूँ जो इतनी जल्दी, किसी का साथ नहीं छोडता.

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Monday, 15 April 2019

ऐ ज़िंदगी तुम कितनी सयानी हो,........

life, love, friends
A photo which shows two different faces of life..........

ऐ ज़िंदगी तुम कितनी सयानी हो, ऐ ज़िंदगी तुम कितनी सयानी हो,
कोई कविता सी हो, अपने लफ्जों में यादों का सागर समेटे हुए,
या किसी शायर की ज़िंदगी से जुड़ी खूबसूरत कोई कहानी हो,
ऐ ज़िंदगी तुम कितनी सयानी हो,........

तुम नीरस हो, तुम सरस हो, तुम ज़हमत हो, तुम सरल हो,
कुछ लोगो ने तुम्हें खुशहाली कहा, तो कुछ तुम्हें गमगीन कह गए,
जब आसरा छोड़ मुस्कुराहट का, तेरी दहलीज़ से उठने हो हुए,
कमाल के लोगों से मिलाया तूने, जो मेरी ज़िंदगी को हसीन कर गए,
ऐ ज़िंदगी जाने क्यू कई दफा, तुम मेरी होकर भी अनजानी हो,
ऐ ज़िंदगी तुम कितनी सयानी हो,............

बड़ा जद्दो जेहत भरा है उर्दू के अल्फ़ाज़ों से मुखातिब होना,
तुम्हारी रहमत में हमने देखि है महफिल-ए-मुशायरा भी,
ग़ज़लों के ये बेबाक से नज़्म, बड़े गुस्ताख़ हो गए है मुझसे,
इनसे रूबरू होते ही अब मैं भूल जाता हूँ अपना दायरा भी,
इतने अनुभव देने वाली तुम, किसी खुदा की मेहरबानी हो,
ऐ ज़िंदगी तुम कितनी सयानी हो,............

जो दोस्त तुमने दिये है मूझे, जब उनसे रिश्ता तोड़ना चाहा था,
ऐ ज़िंदगी तुझे बुरा नहीं लगा, जब किसी और को ज़िंदगी माना था,
तेरे कंधे को जब भिगोया था मैंने, तेरे ही दिए आंसुओं से,
तेरी बेरुखी पर मुझको रोना था, तेरी मासूमियत पर मुसकुराना था,
वो किसी खास शख्स की धुंधली तस्वीर जैसी, याद कोई पुरानी हो,
ऐ ज़िंदगी तुम कितनी सयानी हो,........


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Saturday, 16 February 2019

माँ, तुम मुझसे ज़्यादा बहादुर हो.....

Brave Heart Family of a breave soldier.
तुमने मुझे पाल-पोश कर बड़ा किया, शायद अपने स्वार्थ के लिए,
कि बड़ा होकर मैं तुम्हारी सेवा करूंगा, तुम्हारे दुख में साथ रहूंगा,
लेकिन देखो ना, मैं कितना स्वार्थी निकला, जो तुम्हे छोड़ दिया,
बोल दिया मेरे वेतन से तुम घर चला लेना, मैं फ़ोन किया करूंगा.
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मैंने ज़िद करी थी जब जाने की, तुम किसी कोने में रो रही थी,
तुमने कई शहादतें देखीं हैं, इसलिए तुमने मुझे रोका था,
मैं नासमझ सा उम्र के साथ आये जोश में निकल पड़ा घर से,
तुम्हारे आशीर्वाद के लिए मेरी बीवी ने मुझे टोका था.
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माँ मैंने देखा था पापा को चाचा से बात करने में उलझे थे शायद,
माँ मैंने देखा था छुटकी को मेरे पर्स में, तुम्हारी तस्वीर छुपाते हुए,
किताबें लिए हुए पैर छुआ था जिसने मेरा, उस भाई को देखा था,
आईने में देखा था मैंने मेरी बीवी को, आँचल में आंसू बहाते हुए.
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रोहित को देखा था मैंने मेरी वर्दी में खुद की कल्पना करते हुए,
मेरी हिम्मत से बाहर था रोशनी को, मेरी पैरों से अलग करना,
मेरी टोपी जो घर आते ही मैंने तुम्हारे कमरे में रख दी थी,
मुझे देते हुए तुमने कहा था- पूरे समर्पण से देश की हिफाज़त करना.
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माँ मैं जनता हूँ पापा जानबूझकर मुझे नज़रअंदाज़ कर रहे थे,
छुटकी की शादी की कम, मेरे लौट आने की बात कर रहे थे,
तुम्हारे आंसू भी जब नही थमे तुम्हारी ममता भरी आंखों में,
तुम गइया को चारा देने चली गयी, ये तुम्हारे अंदाज़ कह रहे थे.
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माँ तुम सच में बहुत बहादुर हो, जो मेरा फ़ोन उठा लेती हो,
माँ तुम आज भी मेरे लिए स्वेटर बुनती हो, कशीदाकारी करके,
माँ मैं जानता हूँ भाई आज भी जलता होगा जब तुम नहीं देती,
अचार का वो डिब्बा, जिसमे रखा है मेरे लिए लोरी भरके..
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जब मेरे मारे जाने की खबर तुमको कोई बताता नहीं होगा,
सबसे पहले दुश्मनों से ज़्यादा घरवालों पर गुस्सा करती होगी,
खुद कलेजे फाड़ कर रोती होगी, पहले तो बहुत ही ज़्यादा,
मेरी बीवी को तुम्ही चुप करा कर, अकेले आहे भरती होगी.
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माँ मैं डर गया था यूँ मौत को अपने सामने देखकर बहुत ज़्यादा,
तुम्हारी आंख फड़फड़ाई होगी तो tv तुमने भी चालू किया होगा,
किसी न्यूज़ चैनल की आवाज़ सुनकर जब मेरी बीवी आयी होगी,
तुमने तुरंत चैनल बदलकर किसी सीरियल वाले पर किया होगा.
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मैं तुम्हे माँ नहीं कह पाऊंगा, तुम आज भी मुझे बेटा कहती होगी,
पापा खेती करके देश की सेवा करते होंगे, भाई ट्यूशन पढ़ाकर,
रोहित को गांव के सरकारी स्कूल में ही भेजती होगी तुम ना,
और रोशनी को बड़ा किया होगा मेरी बचपन की बातें सुनाकर.
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अपने छोटे बक्से से जब तुम मेरी बचपन की एल्बम निकाली होगी,
अपने भाग्य पर खुश हुई होगी, और उसी भाग्य पर रोई होगी,
दिल बहलाने के लिए मेरी बीवी का, मेरी हरकते सुनाती होगी,
कभी कभी तो मेरी बचपन की ही यादों में, बच्चों जैसी खोई होगी.
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माँ, मेरे पास शब्द नही हैं तुम्हारी बहादुरी की तारीफ करने को,
तुमने मुझे जन्म दिया है इसका, ये देश तुम्हारा कर्जदार है,
तुम देखना मेरी कहानियां सुनकर कितने वीर जन्मेंगे अभी,
अपने बेटों की शहादत के लिए जाने कितनी माँ तैयार हैं....

Sunday, 27 January 2019

Friendzoned v/s Single....

This is an art of Shashikant Sharma. When not found a suitable cover for my poem, just drawn it.

जब उसने पहली बार एंट्री ली, वो पल बहुत ही ब्यूटीफुल था,
तुम बात करने के मौके ढूंढ रहे थे, मैं निहारने में मसगुल था,
यूँ तो हम दोनों ही उसके आशिक़ है, जिसे वो नहीं जानती,
तुम करीब होने के बाद भी अगर दूर हो, तो मैं सिंगल ही सही.

हम दोनों चाहते है उसको, कि वो रोज पढ़ने के लिए आये,
हम चाहते हैं कि अंताक्षरी हो, और वो कोई गीत सुनाए,
मैं चाहता हूँ वो पैदल घर जाए, ताकि पूरे रास्ते उसे देख सकूं,
तुम खुद की बाइक पर उससे दूर हो, तो मैं सिंगल ही सही.

कही भी चले जाते हो अगर तुम, उसके ज़रा सी बुलाने पर,
मैसेज करते हो जाने कितने, उसके ऑनलाइन आने पर,
मेरे तो न कांटेक्ट लिस्ट में है वो, ना फ्रेंड लिस्ट में ही है,
छोटी बातों के लिए भी उसके मुखबिर हो, तो मैं सिंगल ही सही.

तुम हर बार हँसा सकते हो उसको, अपने फालतू जोक्स सुनाके,
मैंने तो उसे देखा भी नही है कभी, नज़रो से नज़र मिलाके,
वो रो कर तुम्हे गले लगा ले, तो मुझे उसके आंसू दिखते है,
उसका टच पाकर तुम खुशी में चूर हो, तो मैं सिंगल ही सही.

उसका मुस्कुराता हुआ चेहरा हमें, दुगना खुश कर जाती है,
उसके आंसुओ की वजह तो वो, खुद रोकर तुम्हे सुनाती है,
मुझे तो उसके मायूस चेहरे की वजह भी पता नहीं चलती,
तुम सबकुछ सुनकर भी मजबूर हो, तो मैं सिंगल ही सही.

उसके आंखों की चमक को, मैं हर पल ही एहसास करता हूँ,
तुम बात कर लेते हो उससे, मैं उसके hi को ही याद करता हूँ,
मैं अनजान हूँ पर तुम जानते हो, वो किसी और पे मरती है,
*As a friend* अगर तुम मशहूर हो, तो मैं सिंगल ही सही.

उसे कैसा लड़का चाहिए ये बात, उसने तुम्हे कभी बताया है,
तुम्हारे भीतर वैसा ही बनने का, वाहियात सा खयाल आया है,
मैं जैसा हूँ कोई वैसे ही क़बूल कर ले मुझे, तो क्या बात,
और तुम्हारा प्रपोजल उसे नामंजूर हो, तो मैं सिंगल ही सही.

This also is an art of mine. Shown through this pictire how a single guy looks at his crush.
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Sunday, 13 January 2019

हम जननी कि गइल अन्हरिया, रात अँजोरिया आइल.

You can check out below audio, if get trouble while reading.
This is an awesome creation.
हम जननी कि गइल अन्हरिया, रात अँजोरिया आइल,
गोरा गईले गइल गुलामी, असल स्वराज भेटाईल,
हम जननी की गइल अन्हरिया, रात अँजोरिया आइल,

गांधी बाबा के जिनगी के गुन, गाँवे गाँवे गवाईल,
प्रजातंत्र के मंत्र फूँक के, मोटका खादर सियाईल,
सब चान्हाक नेता बन गईले, बुड़बक लोग पछुवाईल,
हम जननी........

रूस अमेरिका से कर्ज़ा लेके, कल कारखाना खोनाईल,
मंत्रीजी के साढ़ू-साला, साझेदार राखाईल,
असली माल अब मिलत नईखे, नकली बा महंगाईल,
असली ह कि नकली ई, चिन्हलो से ना चिन्हाईल,
आ हम जननी कि........

आई. ए., बी. ए., एम. ए. कईल, सब बेकार काहाईल-2,
जवना जवना आफिस में गईनी, sorry शब्द सुनाईल-2,
मंत्रीजी के बेटा नाती, उनके काम भेटाईल,
आ हम जननी कि.......
गोरा गईले गइल गुलामी......

rail में देखनी ठेलमठेल-2, कतना पाकिट मराईल-2,
पढ़वईया बिना ticket के चढले, अनपढ़ लोग धराइल,
TTE, guard बेचारा बनके, बोगी में चलस लुकाईल,
Chain-pull के बात जन पूछी, भैकम खूब कटाईल,
हम जननी........

बस में देखनीं कसम-कस-2, बोरा अस गांजाईल,
कुछ लोग बईठस छत के ऊपर, कुछ लोग पीछे टांगाइल,
जे कहलस कि भीड़ भईल बा, उल्टे उहे डाटाईल,
कंडक्टर आ खालासी के देखनीं, कुक्कुर अस बघुवाईल,
हम जननी.......

चोर चलत बा सीना तान के-2, साधु चलस लुकाईल-2,
सतवंती के रोवत देखनीं, बेश्या के मुस्काईल,
इज्जतदार के गुपचुप देखनीं, लंगवन के आफानाईल,
हम जननी........

सटल पैंट आ सटल टी-शर्ट-2, तेरे नाम बार कटाईल,
पढ़े लिखे में जीरो समझब, हीरो चाहस कहाईल,
फैशन में चूर passion लेके, रोड पे चलस अगाराईल,
केहू कहे कि लईका ह, केहू के लईकी बुझाईल,
लईका ह कि लईकी ई, बिजय से भी ना चिन्हाईल,
हम जननी..........
गोरा गईले गइले गुलामी......
हम जननी कि........
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I can't ever think this great. Really, this is only my Papa, who can make this happen. I Love You Papa. I really want to be a little bit like you. And that day will be my greatest achievement.

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Thursday, 10 January 2019

Me and She.....

Check out my audio below. But this will soon be replaced with a video of the same poem, with my face.


मैं उस रोज़ अपने मोड़ से बस में चढ़ा, वो मेरी क्लास का पहला दिन था,
सीट पर बैठने के बाद फ़ोन निकाल कर, मैं गाना सुनने में लीन था,
कि गाड़ी उसके मोड़ पर पहुंच गयी जाने कब, मुझे तो पता भी न चला,
और वो जिसने दरवाजे से entry ली, उसका चेहरा बड़ा ही हसीन था.
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उसे देखते ही मैंने खुद को चुपचाप, अपनी सीट से खड़ा कर लिया था,
ये पहली बार था शायद जब उसको, किसी नई अपना सीट दिया था,
किसी को ये मेरा चीप बेहवीयर लगा, तो किसी को अच्छा भी लगा था,
पर चलो मुझे खुद से तसल्ली थी कि मैंने, कुछ तो अच्छा किया था.
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फिर चुप चाप सी वो, चुप चाप से मैं, उतरे एक ही जगह पर हो गए दो ओर,
रिटर्न में वो पहले से ही बस में थी, मैंने भी पकड़ लिया सीट का दूसरा छोर,
अगले दिन जैसे ही वो अंदर आयी, मैं फिर अपने सीट से खड़ा हो गया,
कि तभी मेरी सीट पर एक आंटी बैठ गयीं, और वो बैठी जाके कहीं और.
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निकलता टाइम पर ही था, भले ही मैं जल्दी तैयार हो जाया करता था,
शायद उसी के लिए ही ठंढी में भी, मैं हर रोज़ नहाया करता था,
वो जो चिढ़ता था बहुत, किसी भी परफ्यूम के बेकार सी स्मेल से,
अब क्लोज अप से ब्रश भी करता, और सेट वेट भी लगाया करता था.
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उससे बस दोस्ती करने के लिए ही मैंने, हैप्पन पर एकाउंट बनाया था,
लेकिन इंस्टा और फेसबुक पर भी उसको, मैं नही ढूंढ पाया था,
नज़रे बचा कर चोरी छिपे कभी कभार, बस उसके दीदार हो पाते थे,
और तकलीफ तो ये थी की एक रात भी, उसका सपना तक नही आया था.
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हर बार सीट खाली क्यो मिलती थी इसका, उसे नहीं हुआ एहसास भी,
दोस्ती तो दूर, उसने देखा भी नहीं मुझे, इतने दिन मिलने के बाद भी,
समीज-सलवार पहनी हुई साधारण सी, वो बहुत प्यारी लगती थी,
मुझे याद है मैंने अपनी डायरी में लिखा है, उससे जुड़ी एक याद भी.
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वो लड़की अकेली कहाँ रहती, कहीं भेजा नहीं उसे बस यही सोचकर,
ये समाज जानवरो से भरा पड़ा है, जो रख देंगे उसके कपड़े नोचकर,
ये ज़ख्म बड़े गहरे दे डालते हैं, बस हल्के से ही बदन को खरोंचकर,
तुम बोल नहीं पाओगे की कोई सुने, सब रख देंगे तुम्हें दबोचकर.
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पर मैं तो लड़का था इसलिए मैंने, एक बढ़िया सा रूम ले लिया साल में,
रोज़ बस की भीड़ में अप-डाउन करना, मुझे पसंद नहीं था किसी हाल में,
इसलिए यही रहना डिसाइड किया, अपने दिल के साथ सैक्रिफाइस करके,
और उसके चेहरे की तस्वीर रख ली मैंने, दिल के किसी safe wall में.
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मुझे याद आता है वो तारीख, जिस दिन मुझे रूम पर रहने आना था,
मेरी निगाहें दरवाजे पर ही टिकी थी, उसका चेहरा जो मन में बसाना था,
उसकी एंट्री भी ज़बरदस्त थी, उस दिन काफी सुंदर दिख रही थी वो,
एक तो पिछली रात उसका बर्थडे था, दूसरे एग्जाम देने जाना था.
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उसके पापा ने नोकिया 1200 फ़ोन, बनवा कर दिया उसको गिफ्ट में,
वहीं जो कभी टूट गया था उनसे, किसी बड़े से होटल के लिफ्ट में,
वो अपने दोस्त से कह रही थी कि, उस दिन वो लेट हो जाएगी,
उसका एग्जाम था शायद बीए का, और वो भी सेकंड शिफ्ट में.
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फिर ना हम कभी मिले किसी मोड़ पर, और ना ही हुई हमारी कोई बात,
कुछ इसी तरह से होना लिखा था, मेरी एक नई ज़िंदगी की शुरुआत,
फिर दो-ढाई महीनों के बाद जब मैं गाँव जाकर वापस आ रहा था,
कंडक्टर पूछा हमने आना-जाना, क्यो छोड़ दिया एक साथ.
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मैं हैरान था कि उसके पिता, उसके बाहर रहने के लिए कैसे मान गए,
हो सकता है आने जाने की समस्या को, अब वो भी ठीक से जान गए,
वो पहला दिन था मेरे लिए जिस दिन, मैंने अपना सीट नहीं छोड़ा था,
और उसी दिन से उसको देखने के, मेरे भीतर से सारे अरमान गए.
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एक लड़का बता रहा था उसके गांव का, कि वो बिचारी अब रही नहीं,
उस दिन एग्जाम से आते देरी हो गयी, परिंदा भी दिख रहा था कही नहीं,
परिंदे तो चलो घर लौट जाते है शाम को, पर दरिंदे शिकार ढूंढते रहते है,
4 दरिंदो ने मिलकर उसपर ज़ुल्म किया, उस दर्द को वो और सही नही.
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बाप ने कोई कंप्लेन नहीं किया, न्यूज़ और थाना में एक्सपोज़ होने के डर से,
पर वो दरिंदे सरेआम घूमते दिख जाते है, कभी अपाचे तो कभी पल्सर से,
उन लड़को ने सलाह दिया था, अगर कंप्लेन की तो तेरी एक और बेटी है,
उसकी बहन ने भी पांचवी से पढ़ाई छोड़ दी, निकलती नही वो भी घर से.
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जिसे कंडक्टर ने भाड़ा के लिए डांटा था, सिसकी नहीं सीधा रो गयी थी,
जो पुरानी फ़ोन को भी गिफ्ट में पाकर, बहुत ही ज़्यादा खुश हो गयी थी,
मेरी दोस्त जैसी वो जिसे देखा करता था, अब जाने कहाँ गुम हो गयी थी,
शायद दरिंदगी के बाहर दूसरी दुनिया में, अब चैन की नींद वो सो गयी थी.
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अब से मैं यही रहता हूँ, और कभी अगर घर जाना होता है तो ट्रैन से जाता हूँ. और किसी भी लड़की की तरफ देखता भी नहीं हूँ. भगवान ना करे, पर अगर उसके साथ भी कुछ हो गया तो?
बहुत बहुत धन्यवाद


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